रुस्वाइयाँ ग़ज़ब की हुईं...
रुस्वाइयाँ ग़ज़ब की हुईं तेरी राह में
हद है कि ख़ुद ज़लील हूँ अपनी निगाह में
मैं भी कहूँगा देंगे जो आज़ा गवाहियाँ
या रब यह सब शरीक थे मेरे गुनाह में
थी जुज़वे-नातवाँ किसी ज़र्रे में मिल गई
हस्ती का क्या वजूद तेरी जलवागाह में
ऐ 'शाद' और कुछ न मिला जब बराये नज़्र
शर्मिंदगी को लेके चले बारगाह में।
This is a great ग़ज़ब शायरी.