हिन्दू मुस्लिम के लिए कोई सज़ा क्यों माँगूँ ज़ुल्म इंसान पे हो ऐसी दुआ क्यों माँगूँ लाख मजबूर सही फिर भी करूँगा न सवाल माँगना जिन से गुनह है तो भला क्यों माँगूँ ज़िक्र करता हूँ गुनाहों की तलाफ़ी के लिए होश रखता हूँ भला कोई ख़ता क्यों माँगूँ मेरी तक़दीर में पाकीज़ा हवा है शामिल हर किसी पेड़ से लिपटे वो हवा क्यों माँगूँ जब कि तूफ़ान में चलती है हमारी कश्ती टूटे दिल की कोई हल्की सी सदा क्यों माँगूँ घर बुलाता है मुझे फिर कोई मग़रूर 'ज़मीर' मुझ को जाना ही नहीं है तो पता क्यों माँगूँ