हिसार-ए-दर्द सा मैं सई-ए-राएगाँ सा मैं ये शो'ला शो'ला फ़ज़ा और धुआँ धुआँ सा मैं पहेलियाँ सी मिरे इर्द-गिर्द बिखरी हुईं हुज़ूर-ए-वक़्त कोई लम्हा-ए-गिराँ सा मैं क़दम क़दम नए उन्वान मुँह उठाए हुए किसी रिवायत-ए-कुहना की दास्ताँ सा मैं किसी गुज़रते हुए सानेहे का लम्हा तू और एक लम्हे की ख़ातिर रवाँ-दवाँ सा मैं मैं इंतिज़ार की तक़्दीस तू शिकस्त-ए-वफ़ा तू दाएरों का मकीं दर्द-ए-ला-मकाँ सा मैं तमाम सम्त वही शोर में फ़क़त मैं हूँ कहाँ ये शोर कहाँ एक बे-ज़बाँ सा मैं मुझे बना के तिरी आँख खुल गई जैसे बिखर गया हूँ यहाँ ख़्वाब-ए-राएगाँ सा मैं हज़ारों ख़्वाहिशें लाखों अलम मिरे हमराह रगों का 'अश्क' कहाँ जाने कारवाँ सा मैं