हो अगर उलझन या कोई ग़म तू मुझ से बात कर यूँ न कर आँखों को अपनी नम तू मुझ से बात कर कौन सी शय आसमाँ में है निहाँ मुझ को बता क्यों भला देखे इधर हर दम तू मुझ से बात कर गुफ़्तुगू से ही यहाँ पर हल कोई हो पाएगा ख़ामुशी कर देगी ये बे-दम तू मुझ से बात कर क्या दिया है आप ने जुज़ मुझ को इक तस्वीर के हाँ उसी से कहती हूँ हमदम तू मुझ से बात कर चार दिन की ज़ीस्त में बस चार पल ख़ुशियों के हैं किस लिए फिर रात दिन मातम तू मुझ से बात कर 'रीत' क्या तन्हा सफ़र सच में तुझे खलने लगा क्या नहीं कहता कोई जानम तू मुझ से बात कर