हो चुका जो कि मुक़द्दर में था दरमाँ होना अब तिरे हाथ है मुश्किल मिरी आसाँ होना था जो मक़्सूम में शर्मिंदा-ए-एहसाँ होना ग़ैर के हाथ रहा दफ़्न का सामाँ होना हुस्न का इश्क़ की वादी में नुमायाँ होना रम्ज़ था दिन को सर-ए-तूर चराग़ाँ होना लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जराहत तो मिरे दिल से न पूछ पहलू-ए-ज़ख़्म में लाज़िम था नमक-दाँ होना इक क़यामत का समाँ था तिरा ऐ सुब्ह-ए-वतन पर्दा-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ का नुमायाँ होना ख़ाना-बर्बादियाँ हर सम्त से घेरे हैं मुझे दर-ओ-दीवार प लिक्खा है बयाबाँ होना इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत में न जाने क्या हो क़हर का सामना है तेग़ का उर्यां होना आ रही हैं ये उमीदों की सदाएँ पैहम गो सफ़र सख़्त है लेकिन न हिरासाँ होना मेरी तुर्बत भी बनी ऐसी ज़मीं पे 'आलिम' जिस की तक़दीर में लिक्खा था बयाबाँ होना