हो गया है ख़ून ठंडा आग दो एक ताज़ा एक ज़िंदा आग दो लम्हा लम्हा काँपता है मेरा दिल रात काली ख़ौफ़ गहरा आग दो साँस लेना किस क़दर दुश्वार है मुंजमिद है मेरा सीना आग दो दस्त-ओ-पा को सुब्ह तक रखना है गर्म सर्द सहरा सर्द ख़ेमा आग दो बादलों से आसमाँ आलूद है और समुंदर बर्फ़-आसा आग दो बस्तियों ने ओढ़ रखा है कफ़न और यहाँ हर फ़र्द मुर्दा आग दो मुझ में 'शाहिद' हुजरा-ए-तारीक है जिस्म-ओ-जाँ हैं शम-ए-कुश्ता आग दो