हो जाएगा मुझे भी नज़ारा कभी कभी आया करो इधर भी ख़ुदारा कभी कभी हसरत रही ये दिल में कि हो जाए दोस्तो उल्फ़त भरी नज़र का इशारा कभी कभी चुपके से हम ने बादा-ए-ज़हराब पी लिया ये इश्क़ में किया है गवारा कभी कभी होती रही हैं ग़र्क़ किनारे ये कश्तियाँ मौजों में भी मिला है किनारा कभी कभी घबरा के नब्ज़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ ठहर गई जिस वक़्त हम ने उन को पुकारा कभी कभी हसरत से हर किसी की तरफ़ देखता हूँ मैं आता है जब ख़याल तुम्हारा कभी कभी 'राही' ख़फ़ा हैं हम से वो लेकिन करम ये है रखते हैं वो ख़याल हमारा कभी कभी