हो किस तरह न हम को हर दम हवा-ए-मतलब देखा जो ख़ूब हम ने दुनिया है जा-ए-मतलब जो गुल-बदन कि आया आग़ोश में हमारे कुछ और बू न निकली उस में सिवाए मतलब उश्शाक़ की भी उल्फ़त ख़ाली नहीं ग़रज़ से मरते हैं ये भी इस पर जिस से बराए मतलब कोई किसी के ऊपर हम ने फ़िदा न देखा मुँह पर फ़िदा हैं लेकिन दिल में फ़िदा-ए-मतलब मतलब के आश्ना को हो किस से आश्नाई कब आश्ना किसी का हो आश्ना-ए-मतलब गर बज़्म-ए-रक़्स देखी तो वाँ भी गोश-ए-दिल में कोई सदा न आई ग़ैर-अज़-सदा-ए-मतलब ज़ेर-ए-फ़लक तो हम से जाती नहीं तमन्ना हाँ फिर फ़लक पे जावें जब हम से जा-ए-मतलब वो आबरू कि जिस पर करते हैं जाँ तसद्दुक़ उस को भी दे चुके हैं अक्सर बराए मतलब जब हर्फ़-ए-आबरू तक पहुँचा 'नज़ीर' फिर तो क्या कहिए ऐसी जागह जिज़्या कि हाए मतलब