होगा कम अपना फ़ासला यूँही कट ही जाएगा रास्ता यूँही शोख़ियाँ तेरी याद आती हैं फिर से आ कर मुझे सता यूँही मैं जलाती रही वफ़ा के चराग़ और बुझाती रही हवा यूँही जब कि क़िस्मत में रौशनी ही नहीं क्यूँ ये ख़ुर्शेद भी उगा यूँही उस की आँखें तो मय का सागर हैं ऐ मिरे दिल तू डूब जा यूँही फूल झड़ते हैं उस की बातों से वो नहीं होता लब-कुशा यूँही मैं ने सूरज का साथ पाया है है 'मुनव्वर' नहीं ज़िया यूँही