होगी इस ढेर इमारत की कहानी कुछ तो ढूँड अल्फ़ाज़ के मलबे में मआनी कुछ तो लोग कहते हैं कि तू मुझ को बुरा कहता है मैं भी सुन लूँ तिरे होंटों की ज़बानी कुछ तो बर्फ़ ने कर्ब की पतवार को भी तोड़ दिया दिल के दरिया को अता कर दे रवानी कुछ तो भूल बैठे हैं वो बचपन के फ़साने लेकिन याद होगी उन्हें परियों की कहानी कुछ तो नक़्श-ए-पा तक भी न छोड़ेगी हवा है पागल कौन जानिब मुझे जाना है निशानी कुछ तो तेरे एहसास में शोले हैं ये माना 'शहपर' सिर्फ़ रस्मी ही सही बर्फ़-बयानी कुछ तो