हों जो सारे दस्त ओ पा हैं ख़ूँ मैं नहलाए हुए हम भी हैं ऐ दिल बहाराँ की क़सम खाए हुए ख़ब्त है ऐ हम-नशीं अक़्ल-ए-हरीफ़ान-ए-बहार है ख़िज़ाँ इन की इन्हें आईना दिखलाए हुए क्या है ज़िक्र-ए-आतिश-ओ-आहन कि गद्दारान-ए-गूल मारते हैं हाथ अंगारों पे घबराए हुए ज़िंदगी की क़द्र सीखी शुक्रिया तेग़-ए-सितम हाँ हमें थे कल तलक जीने से उकताए हुए सैर-ए-साहिल कर चुके ऐ मौज-ए-साहिल सर न मार तुझ से क्या बहलेंगे तूफ़ानों के बहलाए हुए है यही इक कारोबार-ए-नग़्मा-ओ-मस्ती कि हम या ज़मीं पर या सर-ए-अफ़्लाक हैं छाए हुए साज़ उठाया जब तो गरमाते फिरे ज़र्रों के दिल जाम हाथ आया तो महर ओ मह के हम-साए हुए दश्त ओ दर बनने को हैं 'मजरूह' मैदान-ए-बहार आ रही है फ़स्ल-ए-गुल परचम को लहराए हुए