हों मुबारक तुम को शैदाई बहुत हैं हमारे भी तमन्नाई बहुत हम ही कुछ उस के न काम आए कभी ज़िंदगी तो अपने काम आई बहुत रात भी थे गोश-बर-आवाज़ हम दिल धड़कने की सदा आई बहुत डूबना चाहें तो ऐ ज़ालिम हमें है तिरी आँखों की गहराई बहुत हम ही कुछ सोचेंगे अब ऐ चारागर देख ली तेरी मसीहाई बहुत बद-गुमाँ होते न थे यूँ तुझ से हम आज-कल रहती है तन्हाई बहुत बेवफ़ा उस को ही क्यूँ कहिए 'ख़लील' है हमारा दिल भी हरजाई बहुत