होंटों में सच बात दबा लेते हैं लोग अपने मन का पाप छुपा लेते हैं लोग सदियों से हम वीराने में रहते हैं जाने कैसे शहर बसा लेते हैं लोग हम तो उस का मन भी जीत नहीं पाए पत्थर के भगवान जगा लेते हैं लोग आँखें नीची कर के अपनी राह चलो पलकों से अल्फ़ाज़ चुरा लेते हैं लोग एक हमीं हैं काँटों को मुहताज 'ज़फ़र' फूलों से गुल-दान सजा लेते हैं लोग