हूर-ओ-ग़िल्माँ के तलबगार से वाक़िफ़ मैं हूँ साहब-ए-जुब्बा-ओ-दस्तार से वाक़िफ़ मैं हूँ शहर में आप फ़रिश्तों से भी बढ़ कर ठहरे हाँ मगर आप के किरदार से वाक़िफ़ मैं हूँ हक़-नवाई का समझता हूँ इसे मैं इनआ'म क़ैद-ओ-ज़िन्दाँ रसन-ओ-दार से वाक़िफ़ मैं हूँ वो है मजबूर तलब से भी सिवा देने पर ख़ूबी-ए-जुरअत-ए-इज़हार से वाक़िफ़ मैं हूँ मुंसिफ़ी चूमती रहती है दर-ए-अहल-ए-दिल ऐ अदालत तिरे किरदार से वाक़िफ़ मैं हूँ सर सलामत है तो रौज़न भी बना लूँगा मैं हब्स तेरे दर-ओ-दीवार से वाक़िफ़ मैं हूँ किब्र-ओ-नख़वत का है इल्ज़ाम अबस 'अंजुम' पर उस के इख़्लास से अफ़्कार से वाक़िफ़ मैं हूँ