होती है तमन्ना तह-ओ-बाला मिरे आ गे दिल है कि हुआ जाता है रुस्वा मिरे आगे ख़ुद-बीनी ख़ुद-आराई तो है ज़ेब तुझी को जुज़ तेरे नहीं कोई भी ऐसा मिरे आगे ग़म और ख़ुशी सब को मयस्सर है जहाँ में चढ़ता है उतरता है ये दरिया मिरे आगे शोहरत की बुलंदी भी है दो पल का तमाशा किस बात पे इतराती ये दुनिया मिरे आगे दुनिया भी तुझी से मिरी उक़्बा भी तुझी से हर सम्त तू ही काबा कलीसा मिरे आगे पहले तो सर-ए-आम मिला करते थे और अब ख़ल्वत में भी कर लेते हैं पर्दा मिरे आगे कहने का भी आता नहीं हर इक को सलीक़ा है अहल-ए-नज़र का यही कहना मिरे आगे हाँ नाम तो मय-ख़्वारों में है मेरा भी साक़ी औरों को ज़ियादा है ज़रा सा मिरे आगे