होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी बरहम हुई है यूँ भी तबीअत कभी कभी ऐ दिल किसे नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब मिलती है ज़िंदगी में ये राहत कभी कभी तेरे करम से ऐ अलम-ए-हुस्न-आफ़रीं दिल बन गया है दोस्त की ख़ल्वत कभी कभी जोश-ए-जुनूँ में दर्द की तुग़्यानियों के साथ अश्कों में ढल गई तिरी सूरत कभी कभी तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमइन न था गुज़री है मुझ पे ये भी क़यामत कभी कभी कुछ अपना होश था न तुम्हारा ख़याल था यूँ भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त कभी कभी ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी