होती हैं जल से जैसे नदियों की इज़्ज़तें सिद्क़-ए-मक़ाल से हैं यारों की इज़्ज़तें जिन को मिरे नबी की ख़ल्वत हुई अता अफ़ज़ल हैं बस्तियों से ग़ारों की इज़्ज़तें सज्दे में सर कटा के कर्बल की रेत पर शब्बीर ने बढाईं सज्दों की इज़्ज़तें देखो ज़रा तमाशा झूटों के झुण्ड में नीलाम हो रही हैं सच्चों की इज़्ज़तें बैठे न होते फिर से अय्यार तख़्त पर होतीं अगर वतन में अच्छों की इज़्ज़तें उस शहर के बड़ों पर कुत्तों को छोड़ दो लुटती हों जिस नगर में बच्चों की इज़्ज़तें हिजरत की राह पर हूँ पलटूँगा जीत कर क़ाएम रहीं 'ज़फ़र' जो राहों की इज़्ज़तें