हुआ चले या रुके ख़ुशनुमा समाँ हो जाए ये सात रंग का आँचल जो बादबाँ हो जाए सुलग रहा हूँ कई दिन से अपने कमरे में दरीचा खोलूँ तो दुनिया धुआँ धुआँ हो जाए बदल के नाम सुना रक्खी है उसे हर बात ये एक बात बता दूँ तो राज़-दाँ हो जाए मैं अपने आप को छोड़ आया हूँ कहीं पीछे कुछ और तेज़ चलूँ मैं तो कारवाँ हो जाए यहीं कहीं वो मिरे साथ था मैं सोचता हूँ यहाँ घड़ी दो घड़ी कोई साएबाँ हो जाए ये इंतिशार है तरतीब-ए-नौ न जान इसे कि काएनात की हर शय यहाँ वहाँ हो जाए सरिश्क-ए-ग़म को तबस्सुम की सीप में रखिए कि राज़ राज़ रहे हाल-ए-दिल बयाँ हो जाए परों पे तितली के पैग़ाम लिख के भेजूँ मैं हवा का झोंका किसी दिन ख़बर-रसाँ हो जाए जहाँ की रीत है कोहराम मचने लगता है किसी को इश्क़ हो या मर्ग-ए-ना-गहाँ हो जाए अभी तो जिस्म मिरा धूप की अमान में है पराए साए में आ कर न बे-अमाँ हो जाए है इस जहाँ की हर बात आम सी लेकिन जो सच्चे शे'र में ढल जाए दास्ताँ हो जाए