हुआ इक दिन में हम से ग़ैर अच्छा पड़ा दर पर किसी का पैर अच्छा कहा है मैं ने जो देखा सुना है जो तुम समझो बुरा तो ख़ैर अच्छा मोहब्बत हम से मुँह देखे की यारो हो दिल खोटा तो मुँह का बैर अच्छा हमारे रू-ब-रू लाओ तो उस को कहेंगे हम हरम से दैर अच्छा मिटा कर चल दिए वो नक़्श-ए-पा भी हमें ग़ैरों पे छोड़ा ख़ैर अच्छा मुसीबत में हुआ कोई न अपना अगर हमदर्द हो तो ग़ैर अच्छा वफ़ा को भी तिरी वो जौर समझे 'कँवल' तू ने कमाया बैर अच्छा