हुए क्यूँ उस पे आशिक़ हम अभी से लगाया जी को नाहक़ ग़म अभी से दिला रब्त उस से रखना कम अभी से जता देते हैं तुझ को हम अभी से तिरे बीमार-ए-ग़म के हैं जो ग़म-ख़्वार बरसता उन पे है मातम अभी से ग़ज़ब आया हिलें गर उस की मिज़्गाँ सफ़-ए-उश्शाक़ है बरहम अभी से अगरचे देर है जाने में तेरे नहीं पर अपने दम में दम अभी से भिगो रहवेगा गिर्या जैब ओ दामन रहे है आस्तीं पुर-नम अभी से तुम्हारा मुझ को पास-ए-आबरू था वगरना अश्क जाते थम अभी से लगे सीसा पिलाने मुझ को आँसू कि हो बुनियाद-ए-ग़म मोहकम अभी से कहा जाने को किस ने मेंह खुले पर कि छाया दिल पे अब्र-ए-ग़म अभी से निकलते ही दम उठवाते हैं मुझ को हुए बे-ज़ार यूँ हमदम अभी से अभी दिल पर जराहत सौ न दो सौ धरा है दोस्तो मरहम अभी से किया है वादा-ए-दीदार किस ने कि है मुश्ताक़ इक आलम अभी से मरा जाना मुझे ग़ैरों ने ऐ 'ज़ौक़' कि फिरते हैं ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम अभी से