हुए हैं सर्द दिमाग़ों के दहके दहके अलाव नफ़स की आँच से फ़िक्र-ओ-नज़र के दीप जलाओ किरन किरन को सियह बदलियों ने घेर लिया है तसव्वुरात के धुँदले चराग़ो राह दिखाओ कहाँ है गर्दिश-ए-दौराँ किधर है सैल-ए-हवादिस सुकून-ए-मर्ग-ए-मुसलसल में डूबने लगी नाव कभी ख़िज़ाँ के बगूले कभी बहार के झूले समझ सके न ज़माने के ये उतार चढ़ाओ अजीब सा है ख़राबात के फ़क़ीहों का फ़तवा भड़कते शो'लों से तपते दिलों की प्यास बुझाओ हज़ार गर्दनें ख़म हों बुरा नहीं पे सितम है ख़याल-ओ-फ़िक्र की पस्ती निगाह-ओ-दिल का झुकाओ