हुए हम बे-सर-ओ-सामान लेकिन सफ़र को कर लिया आसान लेकिन किनारे ज़द में आना चाहते हैं उतरने को है अब तूफ़ान लेकिन बहुत जी चाहता है खुल के रो लें लहक उट्ठे न ग़म का धान लेकिन तअ'ल्लुक़ तर्क तो कर लें सभी से भले लगते हैं कुछ नुक़सान लेकिन तवाज़ुन आ चला है ज़ेहन-ओ-दिल में शिकस्ता हाल है मीज़ान लेकिन बहुत से रंग उतरे बारिशों में धनक के खुल गए इम्कान लेकिन