हुए जब से मोहब्बत-आश्ना हम नहीं लाते ज़बाँ पर मुद्दआ हम सआ'दत है जो बन जाएँ जहाँ में किसी मजबूर दिल का आसरा हम चलाए तीर छुप-छुप कर जिन्हों ने करेंगे उन के हक़ में भी दुआ हम मिटेगा दाग़-ए-सज्दा कब जबीं से ख़ुदा जाने बनेंगे कब ख़ुदा हम हमारे दरमियाँ क्यूँ फ़ासले हैं कभी सोचा न हम ने मिल के बाहम ख़मोशी मस्लक-ए-साहब-दिलाँ है किसी को भी नहीं कहते बुरा हम हमारी रूह नग़्मा-ख़्वाँ रहेगी फ़ना हो कर नहीं होंगे फ़ना हम हमें है ए'तिमाद अपनी वफ़ा पर नहीं करते किसी का भी गिला हम ज़माना-साज़ निकले तुम तो क्या है ज़रा सी बात को क्या दें हवा हम अगर इज़्ज़त न दी अहल-ए-हरम ने उठा लाएँगे अपना बोरिया हम तसव्वुर भी नहीं बाक़ी ख़ुशी का ग़म-ए-दुनिया में यूँ हैं मुब्तला हम मुसलसल ख़ामुशी के बा'द 'रिफ़अत' सर-ए-मक़्तल हुए हैं लब-कुशा हम