हुए मुझ से जिस घड़ी तुम जुदा तुम्हें याद हो कि न याद हो मिरी हर नज़र थी इक इल्तिजा तुम्हें याद हो कि न याद हो वो तुम्हारा कहना कि जाएँगे अगर आ सके तो फिर आएँगे उसे इक ज़माना गुज़र गया तुम्हें याद हो कि न याद हो मिरी बे-क़रारियाँ देख कर मुझे तुम ने दी थीं तसल्लियाँ मिरा चेहरा फिर भी उदास था तुम्हें याद हो कि न याद हो मिरी बेबसी ने ज़बान तक जिसे ला के तुम को रुला दिया मिरे टूटे साज़ की वो सदा तुम्हें याद हो कि न याद हो तुम्हें चंद क़तरा-ए-अश्क भी किए पेश जिस के जवाब में वो सलाम नीची निगाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो मिरे शाने पर यही ज़ुल्फ़ थी जो है आज मुझ से खिंची खिंची मिरे हाथ में यही हाथ था तुम्हें याद हो कि न याद हो कभी हाथ में जो शराब ली वहीं तुम ने छीन के फेंक दी मुझे याद है मिरे पारसा तुम्हें याद हो कि न याद हो कहीं तुम को जाना हुआ अगर न गए बग़ैर 'नज़ीर' के वो ज़माना अपने 'नज़ीर' का तुम्हें याद हो कि न याद हो