हुई तासीर आह-ओ-ज़ारी की रह गई बात बे-क़रारी की शिकवा-ए-दुश्मनी करें किस से वाँ शिकायत है दोस्त-दारी की मुब्तला-ए-शब-ए-फ़िराक़ हुए ज़िद से हम तीरा-रोज़गारी की याद आई जो गर्म-जोशी-ए-यार दीदा-ए-तर ने शोला-बारी की क्यूँ न डर जाऊँ देख कर वो ज़ुल्फ़ है शब-ए-हिज्र की सी तारीकी यास देखो कि ग़ैर से कह दी बात अपनी उमीद-वारी की बस कि है यार की कमर का ख़याल शेर की सूझती है बारीकी कर दे रोज़-ए-जज़ा शब-ए-दीजूर ज़ुल्मत अपनी सियाहकारी की तेरे अबरू की याद में हम ने नाख़ुन-ए-ग़म से दिल-फ़िगारी की क़त्ल-ए-दुश्मन का है इरादा उसे ये सज़ा अपनी जाँ-निसारी की क्या मुसलमाँ हुए कि ऐ 'मोमिन' हासिल उस बुत से शर्मसारी की