हुजूम-ए-तमन्ना से लाचार हैं हम फ़रेब-ए-जहाँ में गिरफ़्तार हैं हम हमारे लहू से ये मक़्तल सजा है मगर इस कहानी में इक बार हैं हम दिल-ए-मुज़्तरिब की ख़ुदारा सुनो कुछ निगाह-ए-सितम में कहाँ यार हैं हम हमारी रगों में है ख़ूँ इंक़िलाबी शब-ए-ज़ुल्म के आगे दीवार हैं हम न आएँगे हम दस्तरस में तुम्हारी ज़मीं आसमाँ से बहुत पार हैं हम हमारे है दम से चराग़ाँ जहाँ में ख़ुदा की ख़ुदाई का शहकार हैं हम किसी हौसले की ज़रूरत नहीं है अगरचे हज़ीमत से दो-चार हैं हम नुमूद-ए-सहर की है उम्मीद हम से सिला-ए-सुख़न के भी सालार हैं हम रहेगा हमारा सदा नाम 'अम्बर' सुनो ज़िंदगी के वो आसार हैं हम