हुज़ूर-ए-यार भी आँसू निकल ही आते हैं कुछ इख़्तिलाफ़ के पहलू निकल ही आते हैं मिज़ाज एक नज़र एक दिल भी एक सही मुआमलात-ए-मन-ओ-तू निकल ही आते हैं हज़ार हम-सुख़नी हो हज़ार हम-नज़री मक़ाम-ए-जुम्बिश-ए-अब्रू निकल ही आते हैं हिना-ए-नाख़़ुन-ए-पा हो कि हल्क़ा-ए-सर-ए-ज़ुल्फ़ छुपाओ भी तो ये जादू निकल ही आते हैं जनाब-ए-शैख़ वज़ू के लिए सही लेकिन किसी बहाने लब-ए-जू निकल ही आते हैं मता-ए-इश्क़ वो आँसू जो दिल में डूब गए ज़मीं का रिज़्क़ जो आँसू निकल ही आते हैं