हम अपने आप को फिर आज़मा के देखेंगे जला के देख लिया अब बुझा के देखेंगे नए सिरे से करें अपनी ज़िंदगी आग़ाज़ नई ज़मीं पे नया घर बना के देखेंगे करेगा साथ हमारे सुलूक वो कैसा किसी को तख़्त पे अपने बिठा के देखेंगे दिखाई देगा सियाह-ओ-सफ़ेद राहों में हम अपनी आँख की लौ को बढ़ा के देखेंगे गुज़ारनी है बहर-हाल ज़िंदगी अपनी कमा के देख लिया अब गँवा के देखेंगे ज़रूर दाद मिलेगी ग़ज़ल हो कैसी भी मुशाएरे में चलो हम भी गा के देखेंगे