हम बिन ग़म-ए-यार भी जिए हैं मरने के बड़े जतन किए हैं मख़्फ़ी तुझ से भी हैं ग़म-ए-यार कुछ वार जो दिल ने सह लिए हैं दिल से भी छुपा के हम ने रक्खे कुछ चाक जो उम्र भर सिए हैं कुछ ख़ून-ए-वफ़ा से कुछ हिना से क्या रंग बहार ने लिए हैं अफ़्सोस हमारी सख़्त-जानी अहबाब ने भी गिले किए हैं गुलशन में अजब हवा चली है फूलों ने होंट सी लिए हैं दिल-बाख़्तगी ओ शेर-ख़्वानी दो काम तो उम्र भर किए हैं कहते थे तुझी को जान अपनी और तेरे बग़ैर भी जिए हैं