हम दिल ओ जाँ से ख़रीदार हैं किन के उन के बाइस-ए-गर्मि-ए-बाज़ार हैं किन के उन के ये ख़ुदा जाने किसी को है ख़बर या कि नहीं हम भी इक आशिक़-ए-ग़म-ख़्वार हैं किन के उन के मक़्तल-ए-इश्क़ में हम रोज़-ए-अज़ल से यारो बिस्मिल-ए-ग़मज़ा-ए-ख़ूँ-ख़्वार हैं किन के उन के था जिन्हें हुस्न-परस्ती से हमेशा इंकार वो भी अब तालिब-ए-दीदार हैं किन के उन के हम को अय्यार समझते हैं ये बे-मेहर 'निसार' जो दग़ाबाज़ हैं सो यार हैं किन के उन के