हम ग़म-ए-ज़माना से यूँ नज़र मिलाएँगे मुश्किलें पड़ेंगी जब और मुस्कुराएँगे फिर बहार आएगी फूल मुस्कुराएँगे फिर जुनूँ के अफ़्साने हम को याद आएँगे ज़ाहिरी तपाक उन का दे गया हमें धोका ये समझ रहे थे हम दिल से दिल मिलाएँगे आसमाँ के सह पारो तेज़-गाम सय्यारो अन-क़रीब तुम से भी हम क़दम मिलाएँगे जादुई ख़िरद है वो ये जुनूँ की मंज़िल है तुम इधर न आओगे हम उधर न जाएँगे वो हज़ार ठुकराए हम से रूठ भी जाए ज़िंदगी को ख़ुद बढ़ कर हम गले लगाएँगे आज तो 'जमाली' को बज़्म से उठाते हैं एक दिन ज़रूर उस को आप फिर बुलाएँगे