हम हैं और ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ है आज-कल सब्र का फिर इम्तिहाँ है आज-कल हम से रूठा है तो फिर किस से है ख़ुश किस पे आख़िर मेहरबाँ है आज-कल दिल भी पज़मुर्दा है आँखें मुज़्महिल याद बस तेरी जवाँ है आज-कल एक वा'दे पर मिटा दी ज़िंदगी हम सा दीवाना कहाँ है आज-कल घिर गए हम वक़्त के तूफ़ान में ऐ ग़म-ए-जानाँ कहाँ है आज-कल मुल्तफ़ित गुलचीं हैं न सय्याद ख़ुश बर्क़ भी ना-मेहरबाँ है आज-कल एक तो मुश्किल वफ़ा के मरहले और फिर दुश्मन जहाँ है आज-कल दिल शिकस्ता एक 'अफ़्शाँ' ही नहीं कौन है जो नग़्मा-ख़्वाँ है आज-कल