हम जहाँ नग़्मा-ओ-आहंग लिए फिरते हैं लोग हाथों में वहाँ संग लिए फिरते हैं हम ही इस अहद का मे'यार-ए-तग़य्युर होंगे हम कि हर दौर में सौ रंग लिए फिरते हैं क्या हो शोरीदा-सरों की गुज़र औक़ात कि लोग दस्त-ए-बे-फ़ैज़-ओ-दिल-ए-तंग लिए फिरते हैं सब तिरा हुस्न तिरे हुस्न-ए-सही-क़द में नहीं हम भी आँखों में अजब रंग लिए फिरते हैं 'शौक़' दुश्वार है अब मो'जिज़ा-ए-फ़न की नुमूद लोग अशआ'र में फ़रहंग लिए फिरते हैं