हम कुछ इस तरह हयात-ए-गुज़राँ से गुज़रे जैसे एहसास कोई ख़्वाब-ए-गिराँ से गुज़रे यूँ हक़ाएक़ मिरी चश्म-ए-निगराँ से गुज़रे जैसे इक मौज-ए-हवा आब-ए-रवाँ से गुज़रे आगही ऐन हक़ीक़त है मगर शर्त ये है पहले तौफ़ीक़-ए-यक़ीं हद्द-ए-गुमाँ से गुज़रे बाग़ का दर्द उसी फूल के दिल से पूछो मुस्कुराता हुआ जो दौर-ए-ख़िज़ाँ से गुज़रे दिल की हर बात है कहनी मगर ऐसे में नहीं हर्फ़-ए-मौज़ूअ' हदीस-ए-दिगराँ से गुज़रे ख़ाक-आलूद हुई ऐसी गुज़र-गाह-ए-नसीम बू-ए-गुल चीख़ पड़ी हाए कहाँ से गुज़रे ज़िंदगी से ये बता दो कि है मंज़िल कुछ दूर जल्द ही कश्मकश-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ से गुज़रे अब निगाहें वो कहेंगी जो ज़बाँ कहती थी रुख़्सत ऐ दोस्त कि हम लफ़्ज़-ओ-बयाँ से गुज़रे हर कली जामा से बाहर हुई जाती है 'शहाब' देखिए क़ाफ़िला-ए-रंग कहाँ से गुज़रे