हम ने इक उम्र में क्या क्या न जहाँ देखे हैं आसमाँ देखे हैं और क़ा'र-ए-निहाँ देखे हैं जिन की बातों में तजल्ली थी ख़मोशी में तिलिस्म वही अर्बाब-ए-हुनर सोख़्ता-जाँ देखे हैं नग़्मा-ओ-शे'र-ओ-ज़बाँ अहल-ए-सियासत के क़तील पूरी तहज़ीब के मिटने के निशाँ देखे हैं इक़तिदार-ओ-हवस-ओ-शोर-ओ-मुनाफ़िक़-नज़री जिन का शेवा रहा वो पीर-ए-मुग़ाँ देखे हैं जिंस-ए-अर्ज़ां की तरह बिकते हुए अहल-ए-क़लम इश्तिहारों में सजे गुल-बदनाँ देखे हैं जिन से तारीख़ के सफ़्हात भी जाग उठते थे वो ज़माने वो फ़साने गुज़राँ देखे हैं वो हिकायात रक़म कीं कि क़लम ख़ूँ रोया हर रग-ए-ताक पे ज़ख़्मों के वहाँ देखे हैं एक इक हर्फ़ से रौशन हुए जाते थे उफ़ुक़ आइने सेहर-ए-दबिस्ताँ में निहाँ देखे हैं जिन की जादू-असरी ताना-ए-अहबाब बनी वो तिलिस्मात लिखे हर्फ़-ओ-बयाँ देखे हैं जिन की ता'बीर में इक उम्र गँवा दी हम ने राज़ वो सीना-ए-गीती में निहाँ देखे हैं जलते बाम-ओ-दर-ओ-दीवार सुलगते हुए शहर जिन से पथरा गईं आँखें वो समाँ देखे हैं आसमाँ-गीर थे शो'ले ख़स-ओ-ख़ाशाक थे जिस्म क़ैद-ए-बे-जुर्म में सब पीर-ओ-जवाँ देखे हैं दिल ने हर ज़र्रा के हमराह धड़कना सीखा तब नवाओं में ये मा'नी के जहाँ देखे हैं