हम ने इस धूप से अमाँ के लिए जिस्म ताने हैं साएबाँ के लिए आँख मंज़र से आश्ना ही नहीं लफ़्ज़ ढूँडे हैं फिर ज़बाँ के लिए मुझ पे फेंके गए थे जो पत्थर मैं ने रक्खे हैं वो मकाँ के लिए ख़ुद-फ़रेबी तो अब नहीं मुमकिन ख़्वाब देखे हैं बस जहाँ के लिए हम जो भेजे गए हैं दुनिया में एक ता'ना हैं आसमाँ के लिए कोई ख़्वाहिश अधूरी रह जाए कोई हीला हो अब फ़ुग़ाँ के लिए जिन की मंज़िल उन्हें मयस्सर हो वो निकलते हैं फिर कहाँ के लिए हम उदासी की इक शबीह हैं अब इस्तिआ'रा हैं हम ख़िज़ाँ के लिए