हम ने जिस नाम को लुग़त समझा आप ने लफ़्ज़-ए-दस्तख़त समझा मुझ को मत मेरी ही सिफ़त समझा मैं तिरा मन हूँ इतना मत समझा मेरी आदत थे तुम ने लत समझा हाए समझा मगर ग़लत समझा लाल ख़ूँ भी है ख़ून-ए-जाम भी जान अपनी आँखों की असलियत समझा इश्क़ करना मुनाफ़िक़त है दोस्त गर नहीं तो सलाहियत समझा लफ़्ज़-ए-'तू' से ही थी मयस्सर जो ज़ीस्त को हम ने कैफ़ियत समझा