हम ने किसी को अहद-ए-वफ़ा से रिहा किया अपनी रगों से जैसे लहू को जुदा किया उस के शिकस्ता वार का भी रख लिया भरम ये क़र्ज़ हम ने ज़ख़्म की सूरत अदा किया इस में हमारी अपनी ख़ुदी का सवाल था एहसाँ नहीं किया है जो वादा वफ़ा किया जिस सम्त की हवा है उसी सम्त चल पड़ें जब कुछ न हो सका तो यही फ़ैसला किया अहद-ए-मुसाफ़रत से वो मंसूख़ हो चुकी जिस रहगुज़र से तुम ने मुझे आश्ना किया अपनी शिकस्तगी पे वो नादिम नहीं हुआ मेरी बरहना-पाई का जिस ने गिला किया