हम पे वो मेहरबाँ ज़ियादा है इस यक़ीं में गुमाँ ज़ियादा है कुछ कमी है तो कारवाँ में यही रहबर-ए-कारवाँ ज़ियादा है है तो वाइ'ज़ ख़ुदा-परस्त मगर लब पे ज़िक्र-ए-बुताँ ज़ियादा है पेशतर भी यही क़फ़स था मगर अब के शोर-ए-फ़ुग़ाँ ज़ियादा है ज़ुल्म की ख़ैर हो कि अज़्म-ए-जवाँ और भी अब जवाँ ज़ियादा है अल्लाह अल्लाह बज़्म-ए-नौ के चराग़ रौशनी कम धुआँ ज़ियादा है कम न जानो किसी को तुम 'ख़ावर' जो जहाँ है वहाँ ज़ियादा है