हम से ये कह के वो हाल-ए-शब-ए-ग़म पूछते हैं क्या बताओगे न तुम अब भी कि हम पूछते हैं यूँ कोई दे के ज़बाँ अपनी मुकर जाता है आप से कहते हैं ये आप से हम पूछते हैं भूले-भटके जो उधर कोई निकल जाता है ख़ैर बुत-ख़ाने की सब अहल-ए-हरम पूछते हैं मैं ने ऐसा कोई हमदर्द न देखा न सुना सुब्ह को मुझ से वो हाल-ए-शब-ए-ग़म पूछते हैं जो न झेली थी कभी उस ने वो आफ़त झेली आप क्या 'नूह' से अफ़्साना-ए-ग़म पूछते हैं