हम सुनाएँगे तुझे अपना फ़साना एक दिन यूँ नहीं ऐ ज़िंदगी फ़ुर्सत में आना एक दिन बात लम्बी वक़्त थोड़ा आँख नम है आप की इस तरह भी क्या ख़बर थी होगा जाना एक दिन बात आई है ज़बाँ पे अर्ज़ कर दूँ जो कहो हम ने चाहा था तुम्हें अपना बनाना एक दिन रह न जाए कोई हसरत कर गुज़र जो तुझ से हो वर्ना इस अंधे कुएँ में सब को जाना एक दिन हो सका न कुछ भी हम से ऐ वतन कर दे मुआ'फ़ हम ने चाहा था तुझे जन्नत बनाना एक दिन सौ तहों में क़ैद है अब हर ख़ुशी इंसान की सौ तहों को चीर कर है पार जाना एक दिन बात अपनी ग़म पुराने और तेरी दास्ताँ सुन ज़माने कुछ हमें भी था सुनाना एक दिन इन फुहारों से न टूटेंगी ये चट्टानें 'सलील' ले के तुम को बिजलियाँ अब होगा आना एक दिन