हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद जिन आँखों में काजल बन कर तैरी काली रात उन आँखों में आँसू का इक क़तरा होगा चाँद रात ने ऐसा पेँच लगाया टूटी हाथ से डोर आँगन वाले नीम में जा कर अटका होगा चाँद चाँद बिना हर दिन यूँ बीता जैसे युग बीते मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद