हम ने देखी है यही जज़्ब-ओ-असर की सूरत आँख से दिल में उतर जाओ नज़र की सूरत एक ही शय है भरम पैकर-ओ-पैराहन का किसी अख़बार के हो जाओ ख़बर की सूरत पूछना चाहा था उस ने भी हवाओं का मिज़ाज हाथ फैला के बंधे पाँव शजर की सूरत उसे दहलीज़ पे देखा तो ये महसूस हुआ कोई हमराह भी था गर्द-ए-सफ़र की सूरत फिर तवक़्क़ो का सिमटना था ज़रूरी कि इधर कुछ तअल्लुक़ से भी आगे था अगर की सूरत फूट जाए जो कहीं सर तो ये इरफ़ाँ भी बहुत किसी दीवार से क्या निकलेगी दर की सूरत ज़ीस्त ता'बीर भी है ज़ीस्त इबारत ही नहीं हम ने देखा है उसे ज़ेर-ओ-ज़बर की सूरत सूरत-ए-हाल को सीने से लगा लो 'राही' सूरत-ए-हाल से क्या होगी मफ़र की सूरत