हम से न हुई जुरअत-ए-इज़हार-ए-तमन्ना इक उम्र रहे दिल में लिए ख़ार-ए-तमन्ना दिल हो गया है जब से गिरफ़्तार-ए-तमन्ना हाँ सह रहे हैं तब से हम आज़ार-ए-तमन्ना ऐ दोस्त बुझा दे कि अभी जान है बाक़ी अब फूँक ही डालेगी मुझे नार-ए-तमन्ना लिल्लाह नहीं कोई उतर जाने की सूरत दोष-ए-दिल-ए-नाज़ुक पे है वो बार-ए-तमन्ना 'मक़बूल' इसी में है जो ख़ुशनूदी-ए-याराँ तो हम भी किए देते हैं ईसार-ए-तमन्ना