हुनर से जाए किसी के न फ़न से जाता है लहू का दाग़ कहीं पैरहन से जाता है ब-सद अदा निगह-ए-सीम-तन से जाता है जिगर के पार हर इक तीर सन से जाता है नुमूद-ए-तेग़-ए-दन मा'रके का जौहर है दिखा के पीठ कहीं कोई रन से जाता है रगों में सोज़-ए-ग़म-ए-इश्क़ से लहू है रवाँ सो वहशी आगे निकल कर हिरन से जाता है मिज़ा पे होता है रौशन चराग़-ए-तन्हाई असीर-ए-ज़ुल्फ़ अगर अंजुमन से जाता है न कोई तेशा न संग-ए-गिराँ न जू-ए-शीर जुनून-ए-इश्क़ दिल-ए-कोहकन से जाता है