हुश्यार हैं तो हम को बहक जाना चाहिए बे-सम्त रास्ता है भटक जाना चाहिए देखो कहीं पियाले में कोई कमी न हो लबरेज़ हो चुका तो छलक जाना चाहिए हर्फ़-ए-रजज़ से यूँ नहीं होता कोई कमाल बातिन तक इस सदा की धमक जाना चाहिए गिरता नहीं मसाफ़ में बिस्मिल किसी तरह अब दस्त-ए-नेज़ा-कार को थक जाना चाहिए तय हो चुके सब आबला-पाई के मरहले अब ये ज़मीं गुलाबों से ढक जाना चाहिए शायद पस-ए-ग़ुबार तमाशा दिखाई दे इस रह-गुज़र पे दूर तलक जाना चाहिए