हुस्न अच्छा है मोहम्मद का कमाल अच्छा है जो ख़ुदा को भी है प्यारा वो जमाल अच्छा है बज़्म-ए-कौनैन मुरत्तब हुई तेरी ख़ातिर वक़्त है तेरे लिए इस में जो माल अच्छा है मुझ से पूछे तो कोई तेरे ग़ुलामों का उरूज बादशाहों से भी रुत्बे में बिलाल अच्छा है ग़म उठाने की है आदत मिरी तब-ए-सानी मैं तो कहता हूँ कि दुनिया में मलाल अच्छा है क़िस्सा-ए-तूर से वाक़िफ़ है ज़माना सारा कोई किस मुँह से कहे शौक़-ए-जमाल अच्छा है बज़्म में देख के हसरत से किसी को चुप हूँ दर-हक़ीक़त यही अंदाज़-ए-सवाल अच्छा है जिस में इक दिन भी मयस्सर हो मुलाक़ात की रात मेरे नज़दीक तो वो माह वो साल अच्छा है लुत्फ़ देता है मुझे तेरा तसव्वुर शब-ए-ग़म सच कहा करते हैं अच्छों का ख़याल अच्छा है जब से देखे हैं तुम्हारे लब-ओ-अबरू हम ने न कहा है न कहेंगे कि हिलाल अच्छा है तुझ से हट कर कहीं पड़ती ही नहीं मेरी नज़र यूँ तो यूसुफ़ का भी होने को जमाल अच्छा है आशिक़ों के लिए किस काम का है सब्र-ओ-क़रार जो तिरे ग़म में रहे मुज़्तरिब हाल अच्छा है उस ने देखा ही नहीं क़ामत-ए-ज़ेबा तेरा जो ये कहता हो कि गुलशन में निहाल अच्छा है फिर वही ज़िक्र है अर्बाब-ए-करम का 'रासिख़' हम समझते हैं ये अंदाज़-ए-सवाल अच्छा है