हुस्न अगर आश्कार हो जाए By Ghazal << ख़ामोश हैं लब और आँखों से... हम से क़ाएम जुनून-ए-उल्फ़... >> हुस्न अगर आश्कार हो जाए फ़ित्ना-ए-रोज़गार हो जाए दिल को इस तरह देखने वाले दिल अगर बे-क़रार हो जाए शोख़ी-ए-यार का तक़ाज़ा है शौक़ बे-इख़्तियार हो जाए कोई शिकवा रहे न 'अकबर' को तू अगर एक बार हो जाए Share on: