हुस्न की जितनी बढ़ीं रानाइयाँ इश्क़ के सर हो गईं रुस्वाइयाँ उस निगाह-ए-नाज़ का आलम न पूछ छू गई जो क़ल्ब की गहराइयाँ वो हरीम-ए-नाज़ में बेचैन हैं याद आती हैं मिरी तन्हाइयाँ उन हसीं आँखों में आँसू आ गए आह मेरे इश्क़ की रुस्वाइयाँ महफ़िल-ए-दुनिया को ठुकरा दूँ मगर जल्वा-फ़रमा हैं तिरी रानाइयाँ हुस्न के दामन पे धब्बा आ गया दूर जा पहुँचें मिरी रुस्वाइयाँ मेरे क़दमों में है ऐश-ए-जावेदाँ तेरे ग़म की हैं करम-फ़रमाइयाँ इश्क़ की फ़ितरत है 'आरिफ़' बेबसी चल नहीं सकतीं तिरी ख़ुद-आराइयाँ