हुस्न को बे-हिजाब होना था शौक़ को कामयाब होना था हिज्र में कैफ़-ए-इज़्तिराब न पूछ ख़ून-ए-दिल भी शराब होना था तेरे जल्वों में घिर गया आख़िर ज़र्रे को आफ़्ताब होना था कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी कुछ मुझे भी ख़राब होना था रात तारों का टूटना भी 'मजाज़' बाइस-ए-इज़्तिराब होना था